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"गुनाहों से पर्दा कभी तो उठेगा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | + | कहाँ तक कोई भाग करके बचेगा | |
− | + | कहाँ तक करेगा ज़बाँ बंद मेरी | |
− | + | कटेगा गला तो लहू बोल देगा | |
− | + | यहाँ की अदालत बिकाऊ है लेकिन | |
− | + | वहाँ की अदालत से कैसे बचेगा | |
− | + | नज़र भी गुनाहों की देती गवाही | |
− | + | सबूतों को तू नष्ट कितना करेगा | |
− | + | हमारी ग़रीबी के दम पर टिका है | |
− | + | तेरा ये किला , दो मिनट में ढहेगा | |
− | + | हमारे ही बच्चे तेरी फ़ौज में हैं | |
− | + | हुई गर बग़ावत तो कैसे बचेगा | |
− | + | सुना है कि रावन को भी ये बहम था | |
− | + | समंदर पे कोई चढ़ाई करेगा? | |
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18:47, 3 मई 2025 के समय का अवतरण
गुनाहों से पर्दा कभी तो उठेगा
कहाँ तक कोई भाग करके बचेगा
कहाँ तक करेगा ज़बाँ बंद मेरी
कटेगा गला तो लहू बोल देगा
यहाँ की अदालत बिकाऊ है लेकिन
वहाँ की अदालत से कैसे बचेगा
नज़र भी गुनाहों की देती गवाही
सबूतों को तू नष्ट कितना करेगा
हमारी ग़रीबी के दम पर टिका है
तेरा ये किला , दो मिनट में ढहेगा
हमारे ही बच्चे तेरी फ़ौज में हैं
हुई गर बग़ावत तो कैसे बचेगा
सुना है कि रावन को भी ये बहम था
समंदर पे कोई चढ़ाई करेगा?