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"गुनाहों से पर्दा कभी तो उठेगा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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भीड़ से बाहर निकल कर आइए
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गुनाहों से पर्दा  कभी तो उठेगा
इस समंदर में न ग़ुम हो जाइए
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कहाँ तक कोई भाग करके बचेगा
  
फ़ायदा इकला ही चलने में मिले
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कहाँ तक करेगा ज़बाँ बंद मेरी
मेले में आये तो धक्के खाइए
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कटेगा गला  तो लहू बोल देगा
  
आप अपनी बात पर क़ायम रहें
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यहाँ की अदालत बिकाऊ है लेकिन
आप अपने ही सुरों में गाइए
+
वहाँ की अदालत से कैसे बचेगा
  
जिसको जो कहना है वो कहता रहे
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नज़र भी गुनाहों की देती गवाही
आप बिल्कुल भी नहीं घबराइए
+
सबूतों को तू नष्ट कितना करेगा
  
क्या पुरानी लीक पर चलते रहें
+
हमारी ग़रीबी के दम पर टिका है
रास्ता कोई नया दिखलाइए
+
तेरा ये किला , दो मिनट में ढहेगा
  
झुंड में भेडे़ं हैं मरती दोस्तो
+
हमारे ही बच्चे तेरी फ़ौज में हैं
इससे अच्छा है कि मगहर जाइए
+
हुई गर बग़ावत तो कैसे बचेगा
  
जो रचें, जैसा रचें, मौलिक रचें
+
सुना है कि रावन को भी ये बहम था
दूसरों को भी यही बतलाइए
+
समंदर पे कोई चढ़ाई करेगा?
 
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18:47, 3 मई 2025 के समय का अवतरण

गुनाहों से पर्दा कभी तो उठेगा
कहाँ तक कोई भाग करके बचेगा

कहाँ तक करेगा ज़बाँ बंद मेरी
कटेगा गला तो लहू बोल देगा

यहाँ की अदालत बिकाऊ है लेकिन
वहाँ की अदालत से कैसे बचेगा

नज़र भी गुनाहों की देती गवाही
सबूतों को तू नष्ट कितना करेगा

हमारी ग़रीबी के दम पर टिका है
तेरा ये किला , दो मिनट में ढहेगा

हमारे ही बच्चे तेरी फ़ौज में हैं
हुई गर बग़ावत तो कैसे बचेगा

सुना है कि रावन को भी ये बहम था
समंदर पे कोई चढ़ाई करेगा?