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"ग़ज़ल, ग़ज़ल है न उर्दू है ये न हिंदी है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | सभी को रोशनी देता है बराबर सूरज | ||
+ | वो है हिन्दू कि वो मुस्लिम कि सिख, इसाई है | ||
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+ | हम अलग कैसे एक दूसरे से हो सकते | ||
+ | वही हवा, वही पानी है, वही मिट्टी है | ||
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+ | कितने कमज़र्फ़ जो इस पे भी सियासत करते | ||
+ | उसी कपड़े का है गमछा, उसी की टोपी है | ||
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+ | यही जुम्मन से सुना है तो जानकी से भी | ||
+ | हमारे गाँव की बच्ची तो सबकी बेटी है | ||
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+ | हमारी पीर को बेशक अनेक नाम मिले | ||
+ | कभी कवित , कभी ग़ज़ल, कभी रुबाई है | ||
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19:14, 3 मई 2025 के समय का अवतरण
ग़ज़ल, ग़ज़ल है न उर्दू है ये न हिंदी है
लिबास छोड़ के देखो कि रूह कैसी है
सभी को रोशनी देता है बराबर सूरज
वो है हिन्दू कि वो मुस्लिम कि सिख, इसाई है
हम अलग कैसे एक दूसरे से हो सकते
वही हवा, वही पानी है, वही मिट्टी है
कितने कमज़र्फ़ जो इस पे भी सियासत करते
उसी कपड़े का है गमछा, उसी की टोपी है
यही जुम्मन से सुना है तो जानकी से भी
हमारे गाँव की बच्ची तो सबकी बेटी है
हमारी पीर को बेशक अनेक नाम मिले
कभी कवित , कभी ग़ज़ल, कभी रुबाई है