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"वो हसीं है बहुत सोचिए ही नहीं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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होगा कल क्या इसे जानिए ही नहीं
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ऐसी  शोहरत मुझे  चाहिए ही नहीं
 
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12:11, 4 मई 2025 के समय का अवतरण

वो हसीं है बहुत सोचिए ही नहीं
उस नज़र से उसे देखिए ही नहीं

देखने में लगे चाँद मासूम है
पर , हक़ीक़त है क्या पूछिए ही नहीं

फ़िक्र जो हो हवा में उड़ा दीजिये
बोझ दिल पर कोई लादिए ही नहीं

बेवजह की बहस से है क्या फ़ायदा
जो ग़लत है उसे मानिए ही नहीं

बात में ज्योतिषी की न आया करें
होगा कल क्या इसे जानिए ही नहीं

अच्छा होगा कि सह लें परेशानियाँ
हर किसी से मदद माँगिए ही नहीं

जिसको पाने से इज़्ज़त पे बट्टा लगे
ऐसी शोहरत मुझे चाहिए ही नहीं