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"मैं हिन्दू था ग़ज़ल ने मुझको इंसां बना दिया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | मंचों पर आकर करते थे बातें बड़ी- बड़ी | ||
+ | लेकिन मैंने झूठ से उनके पर्दा उठा दिया | ||
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+ | आते - जाते ठोकर ही लगती थी मुसाफ़िरो | ||
+ | मैंने ऐसे पत्थर को रस्ते से हटा दिया | ||
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12:11, 4 मई 2025 के समय का अवतरण
मैं हिन्दू था ग़ज़ल ने मुझको इंसां बना दिया
मेरे क़द, रुतबे को मेरे इतना बढ़ा दिया
धर्मग्रंथ में क्यों ढूँढूँ मैं उसका पता निशां
प्यार, मुहब्बत, इश्क़ ने मुझको सब कुछ सिखा दिया
आँखें हैं फिर भी सच जिनको दिखता कभी नहीं
ऐसे इंसानों को भी आईना दिखा दिया
नफ़रत फैलाने वालों से लोग सतर्क रहें
अपनी बस्ती के लोगों को मैंने बता दिया
मंचों पर आकर करते थे बातें बड़ी- बड़ी
लेकिन मैंने झूठ से उनके पर्दा उठा दिया
आते - जाते ठोकर ही लगती थी मुसाफ़िरो
मैंने ऐसे पत्थर को रस्ते से हटा दिया