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"गाँव से कब दूर जा पाता हूँ मैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | बोझ इतना काम का सर पर लदा | ||
+ | शाम को भूखा भी सो जाता हूँ मैं | ||
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12:12, 4 मई 2025 के समय का अवतरण
गाँव से कब दूर जा पाता हूँ मैं
शहर जाकर लौट फिर आता हूँ मैं
गाँव में मेरा भी अपना नाम है
शहर में मजदूर कहलाता हूँ मैं
गाँव में अपना भी इक छप्पर तो है
शहर में बेघर हुआ जाता हूँ मैं
अब न मैं घर का रहा न घाट का
छोड़ करके गाँव पछताता हूँ मैं
डालता हूँ जान को जोख़िम में रोज़
चार पैसे तब कमा पाता हूँ मैं
गाँव को समझा गँवारों की जगह
खुद की बेकूफी पे शरमाता हूँ मैं
बोझ इतना काम का सर पर लदा
शाम को भूखा भी सो जाता हूँ मैं