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"गर सलामत नहीं है ये पर्यावरण / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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कौन ज़िंदा बचेगा यहाँ एक क्षण
  
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बाग़ महफ़ूज़ अपना तभी मानिए
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एक पत्ते का भी जब न होवे क्षरण
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क्यों हरे पेड़ों को काटने पर  तुले
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इनके हाथों में ही अपना जीवन- मरण
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इन फ़ज़ाओं में  क्यों घोलते हो ज़हर
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एक इंसान का क्या यही आचरण?
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जब हवा शुद्ध हो और जल  स्वच्छ हो
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तब समझना है अनुकूल  वातावरण
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चहचहाते हैं पक्षी सवेरा हुआ
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दे रहा हमको आवाज़  नवजागरण
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गुल खिलें, सबके चेहरे पे मुस्कान हो
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घर का अपने रखें ऐसा वातावरण
 
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12:27, 4 मई 2025 के समय का अवतरण

गर सलामत नहीं है ये पर्यावरण
कौन ज़िंदा बचेगा यहाँ एक क्षण

बाग़ महफ़ूज़ अपना तभी मानिए
एक पत्ते का भी जब न होवे क्षरण

क्यों हरे पेड़ों को काटने पर तुले
इनके हाथों में ही अपना जीवन- मरण

इन फ़ज़ाओं में क्यों घोलते हो ज़हर
एक इंसान का क्या यही आचरण?

जब हवा शुद्ध हो और जल स्वच्छ हो
तब समझना है अनुकूल वातावरण

चहचहाते हैं पक्षी सवेरा हुआ
दे रहा हमको आवाज़ नवजागरण

गुल खिलें, सबके चेहरे पे मुस्कान हो
घर का अपने रखें ऐसा वातावरण