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"गाँव भी अब हो चुका सयाना है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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12:29, 4 मई 2025 के समय का अवतरण
गाँव भी अब हो चुका सयाना है
कितना अब है बचा पुराना है
सादगी अब बदल गयी उसकी
ढंग उसका भी क़ातिलाना है
उड़ना उसको भी आ गया है अब
चाल उसकी भी शातिराना है
अब तलक फूस के वो घर में था
उसको भी पक्का घर बनाना है
छोड़कर भात घर का, होटल में
जा के बिरयानी उसको खाना है
चाय की जगह पी रहा ठर्रा
उसको भी आधुनिक दिखाना है