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"जो मज़ा ईमानदारी में कहाँ वो और है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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ठग, लुटेरे, चोर, डाकू आजकल सक्रिय बहुत
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लाभ जो कालाबजारी में कहाँ वो और है
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मैं तड़पता हूँ तुम्हारी याद में तो क्या हुआ
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लुत्फ़ जो  है  बेकरारी में कहाँ वो और है
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आप के नयनों की चर्चा आजकल तो आम है
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धार जो तिरछी कटारी में कहाँ वो और है
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चार पहिए का है रुतबा, आत्मनिर्भरता मगर
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साइकिल की जो सवारी में कहाँ वो और है
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झंड हो जाती है पूरी ज़िदगानी दोस्तो
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जो सज़ा बेरोज़गारी में कहाँ वो और है
 
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12:32, 4 मई 2025 के समय का अवतरण

जो मज़ा ईमानदारी में कहाँ वो और है
ख़ौफ़ जो चोरी -चकारी में कहाँ वो और है

ठग, लुटेरे, चोर, डाकू आजकल सक्रिय बहुत
लाभ जो कालाबजारी में कहाँ वो और है

मैं तड़पता हूँ तुम्हारी याद में तो क्या हुआ
लुत्फ़ जो है बेकरारी में कहाँ वो और है

आप के नयनों की चर्चा आजकल तो आम है
धार जो तिरछी कटारी में कहाँ वो और है

चार पहिए का है रुतबा, आत्मनिर्भरता मगर
साइकिल की जो सवारी में कहाँ वो और है

झंड हो जाती है पूरी ज़िदगानी दोस्तो
जो सज़ा बेरोज़गारी में कहाँ वो और है