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"क़ातिलों के नगर में ज़िंदा हूँ / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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क़ातिलों के नगर में ज़िंदा हूँ
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भीड़ है साथ मगर तन्हा हूँ
  
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मुरदा होता तो पूछता ही कौन
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ज़िंदा हूँ इसलिए तो ऐसा हूँ
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उसने फ़तवा भी कर दिया ज़ारी
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उसके धंधे के बीच रोड़ा हूँ
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जब तलक हूँ ये घर सुरक्षित है
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यूँ तो छोटा सा एक ताला हूँ
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मुझको विज्ञान का भरोसा है
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पर, ख़ुदा पर यक़ीन करता हूँ
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सिर्फ़ माँ के जिगर का टुकड़ा नहीं
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बाप का भी मैं अपने बेटा हूँ
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मुस्कराना तो मेरी आदत है
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तुम समझते रहे कि अच्छा हूँ
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ज्ञान बेशक नहीं है उर्दू का
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प्यार उर्दू से मगर करता हूँ
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हिन्दू - मुस्लिम हैं जिसकी दो आँखें
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ऐसे हिन्दोस्ताँ में रहता हूँ
 
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12:33, 4 मई 2025 के समय का अवतरण

क़ातिलों के नगर में ज़िंदा हूँ
भीड़ है साथ मगर तन्हा हूँ

मुरदा होता तो पूछता ही कौन
ज़िंदा हूँ इसलिए तो ऐसा हूँ

उसने फ़तवा भी कर दिया ज़ारी
उसके धंधे के बीच रोड़ा हूँ

जब तलक हूँ ये घर सुरक्षित है
यूँ तो छोटा सा एक ताला हूँ

मुझको विज्ञान का भरोसा है
पर, ख़ुदा पर यक़ीन करता हूँ

सिर्फ़ माँ के जिगर का टुकड़ा नहीं
बाप का भी मैं अपने बेटा हूँ

मुस्कराना तो मेरी आदत है
तुम समझते रहे कि अच्छा हूँ

ज्ञान बेशक नहीं है उर्दू का
प्यार उर्दू से मगर करता हूँ

हिन्दू - मुस्लिम हैं जिसकी दो आँखें
ऐसे हिन्दोस्ताँ में रहता हूँ