भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ख़्वाब है या है हक़ीक़त दिल ने भरमाया है क्या / अमर पंकज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमर पंकज |अनुवादक= |संग्रह=लिक्खा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:29, 4 मई 2025 के समय का अवतरण
ख़्वाब है या है हक़ीक़त दिल ने भरमाया है क्या!
आसमां से चाँद धरती पर उतर आया है क्या!
गेसुओं की आड़ से है झांकती तिरछी नज़र,
चाहतों ने आज फिर से पंख फैलाया है क्या!
धड़कनें फिर गुनगुनाईं बन गयी फिर इक ग़ज़ल,
साँस कुछ महकी हुई है तू ने महकाया है क्या!
यक-ब-यक है सामने इक नुक़रई हुस्नो-जमाल,
देह की इस गंध ने फिर मुझको बहकाया है क्या!
सुर्ख़ लब हैं या धधकतीं आग की लपटें ‘अमर’
इश्क़-शोला, वस्ल-पानी, हमने झुठलाया है क्या!