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"ज़िन्दगी कैसी रही है वक़्त ही बतलाएगा / अमर पंकज" के अवतरणों में अंतर

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23:30, 4 मई 2025 के समय का अवतरण

ज़िन्दगी कैसी रही है वक़्त ही बतलाएगा,
दास्तां जो अनकही है वक़्त ही बतलाएगा।

लाज की दीवार थी बन फ़ासला जो दरमियाँ,
जाने कैसे वह ढही है वक़्त ही बतलाएगा।

आँधियों ने घर उजाड़ा ख़्वाब का माना मगर,
दिल के कोने में वही है वक़्त ही बतलाएगा।

क्या मिला क्या मिल न पाया ज़िन्दगी के खेल में,
क्या ग़लत था aक्या सही है वक़्त ही बतलाएगा।

हम झुलसते ही रहे जिस आग में हर दिन ‘अमर’,
बन वही गंगा बही है वक़्त ही बतलाएगा।