भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मन के मांगल गीत / शिव मोहन सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिव मोहन सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:25, 12 मई 2025 के समय का अवतरण
अपने पंख समेट रही है,
हिम-शिखरों की शीत।
अधरों पर आकर छलके हैं,
मन के मांगल गीत ॥
'फूलों की घाटी' उतरी है,
कानन- कानन में ।
बाँट रहे ऋतुराज निछावर,
आँगन- आँगन में ।
कंण- कंण में उत्सव रचता है,
कलरव में संगीत ॥
पीले हाथ हुए हैं , मौसम
में ,हरियाली के ।
पात - पात पर मन लहराए,
दिन ख़ुशहाली के ।
माँ के आँचल में निधियाँ सब,
घर-घर में नवनीत ॥
मधुकर मधुरस ढूँढ रहा है
मधुमय कलियों में ।
ख़ुशबू संग मुनादी करती
पुरवा गलियों में ।
नयनों के संवाद बनाते
अपने मन की रीत ॥