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"मुझे दिया गया शरीर / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर

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मुझे दिया गया शरीर, मैं क्या करूँ इसका
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मुझे दिया गया शरीर, मैं क्या करूँ इसका ?
 
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जितना बेजोड़ यह मेरा है और भला किसका ?
 
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इस शान्त ख़ुशी, इन सांसों और जीवन के लिए
इस शान्त ख़ुशी, इन साँसों और जीवन के लिए
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किसका शुक्रिया अदा करूँ मैं, बताओ प्रिय ?
 
किसका शुक्रिया अदा करूँ मैं, बताओ प्रिय ?
 
  
 
मैं ख़ुद ही माली हूँ और  मैं ही तो हूँ बग़ीचा,
 
मैं ख़ुद ही माली हूँ और  मैं ही तो हूँ बग़ीचा,
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दुनिया के इस अन्धेरे में, सिर्फ़ मैं ही नहीं हूँ रीता ।
  
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अमरत्व के इस काँच पर, ऐ फ़क़ीर !
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लेटी हुई है आत्मा मेरी और शरीर
  
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इस काँच पर ख़ुदे हुए हैं कुछ बेलबूटे ऐसे,
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पहचानना कठिन है जिन्हें पिछले कुछ समय से ।
  
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समय की गन्दी धारा यह बह जाने दो
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ख़ुदे हुए इन प्रिय बेलबूटों को रह जाने दो ।
  
लेटी हुई है आत्मा मेरी और शरीर ।
 
  
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(रचनाकाल : 1909)
  
इस काँच पर ख़ुदे हुए हैं कुछ बेलबूटे ऎसे,
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'''लीजिए अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
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                  Осип Мандельштам
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    Дано мне тело — что мне делать с ним…
  
पहचानना कठिन है जिन्हें पिछले कुछ समय से ।
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Дано мне тело — что мне делать с ним,
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Таким единым и таким моим?
  
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За радость тихую дышать и жить
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Кого, скажите, мне благодарить?
  
समय की गन्दी धारा यह बह जाने दो
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Я и садовник, я же и цветок,
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В темнице мира я не одинок.
  
ख़ुदे हुए इन प्रिय बेलबूटों को रह जाने दो ।
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На стекла вечности уже легло
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Мое дыхание, мое тепло.
  
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Запечатлеется на нем узор,
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Неузнаваемый с недавних пор.
  
(रचनाकाल : 1909)
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Пускай мгновения стекает муть
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Узора милого не зачеркнуть.
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1909 г.
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21:33, 7 जून 2025 के समय का अवतरण

मुझे दिया गया शरीर, मैं क्या करूँ इसका ?
जितना बेजोड़ यह मेरा है और भला किसका ?

इस शान्त ख़ुशी, इन सांसों और जीवन के लिए
किसका शुक्रिया अदा करूँ मैं, बताओ प्रिय ?

मैं ख़ुद ही माली हूँ और मैं ही तो हूँ बग़ीचा,
दुनिया के इस अन्धेरे में, सिर्फ़ मैं ही नहीं हूँ रीता ।

अमरत्व के इस काँच पर, ऐ फ़क़ीर !
लेटी हुई है आत्मा मेरी और शरीर ।

इस काँच पर ख़ुदे हुए हैं कुछ बेलबूटे ऐसे,
पहचानना कठिन है जिन्हें पिछले कुछ समय से ।

समय की गन्दी धारा यह बह जाने दो
ख़ुदे हुए इन प्रिय बेलबूटों को रह जाने दो ।


(रचनाकाल : 1909)

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                   Осип Мандельштам
     Дано мне тело — что мне делать с ним…

Дано мне тело — что мне делать с ним,
Таким единым и таким моим?

За радость тихую дышать и жить
Кого, скажите, мне благодарить?

Я и садовник, я же и цветок,
В темнице мира я не одинок.

На стекла вечности уже легло
Мое дыхание, мое тепло.

Запечатлеется на нем узор,
Неузнаваемый с недавних пор.

Пускай мгновения стекает муть
Узора милого не зачеркнуть.

1909 г.