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"कितना पसन्द है हमें दिखावा करना / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर

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ओह !
 
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कितना पसन्द है हमें
 
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दिखावा करना
 
दिखावा करना
 
 
और कितनी सहजता से हम
 
और कितनी सहजता से हम
 
 
यह भूल जाते हैं, प्यारे
 
यह भूल जाते हैं, प्यारे
 
 
कि बचपन में मृत्यु होती है
 
कि बचपन में मृत्यु होती है
 
 
अधिक निकट हमारे
 
अधिक निकट हमारे
 
  
 
बच्चा
 
बच्चा
 
 
जब ठीक से सो नहीं पाता
 
जब ठीक से सो नहीं पाता
 
 
चिड़चिड़ाता है
 
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पर मैं भला किस पर
 
पर मैं भला किस पर
 
 
हो सकता हूँ नाराज़
 
हो सकता हूँ नाराज़
 
 
जब अकेला चल रहा हूँ
 
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अपनी राह पर आज
 
अपनी राह पर आज
 
  
 
मैं सोना नहीं चाहता
 
मैं सोना नहीं चाहता
 
 
गहरे जल में डूबी मछली-सा
 
गहरे जल में डूबी मछली-सा
 
 
निश्चिन्त बेहोश नींद
 
निश्चिन्त बेहोश नींद
 
 
मुझे प्रिय है
 
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राह अपनी स्वतन्त्र
 
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जानता हूँ निष्कंटक नहीं वह
 
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कठिनाइयाँ
 
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उस पर होंगी अनन्त
 
उस पर होंगी अनन्त
  
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(रचनाकाल : 14 फरवरी, 1932)
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'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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'''लीजिए अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
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            Осип Мандельштам
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      О, как мы любим лицемерить
  
(रचनाकाल : 14 फरवरी, 1932)
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О, как мы любим лицемерить
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И забываем без труда
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То, что мы в детстве ближе к смерти,
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Чем в наши зрелые года.
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Ещё обиду тянет с блюдца
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Невыспавшееся дитя,
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А мне уж не на кого дуться
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И я один на всех путях.
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Но не хочу уснуть, как рыба,
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В глубоком обмороке вод,
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И дорог мне свободный выбор
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Моих страданий и забот.
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1932 г.
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14:43, 9 जून 2025 के समय का अवतरण

ओह !
कितना पसन्द है हमें
दिखावा करना
और कितनी सहजता से हम
यह भूल जाते हैं, प्यारे
कि बचपन में मृत्यु होती है
अधिक निकट हमारे

बच्चा
जब ठीक से सो नहीं पाता
चिड़चिड़ाता है
पर मैं भला किस पर
हो सकता हूँ नाराज़
जब अकेला चल रहा हूँ
अपनी राह पर आज

मैं सोना नहीं चाहता
गहरे जल में डूबी मछली-सा
निश्चिन्त बेहोश नींद
मुझे प्रिय है
राह अपनी स्वतन्त्र
जानता हूँ निष्कंटक नहीं वह
कठिनाइयाँ
उस पर होंगी अनन्त

(रचनाकाल : 14 फरवरी, 1932)

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
            Осип Мандельштам
      О, как мы любим лицемерить

О, как мы любим лицемерить
И забываем без труда
То, что мы в детстве ближе к смерти,
Чем в наши зрелые года.

Ещё обиду тянет с блюдца
Невыспавшееся дитя,
А мне уж не на кого дуться
И я один на всех путях.

Но не хочу уснуть, как рыба,
В глубоком обмороке вод,
И дорог мне свободный выбор
Моих страданий и забот.

1932 г.