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"आन्ना अख़्मातवा के लिए-3 / ओसिप मंदेलश्ताम" के अवतरणों में अंतर
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+ | इस कविता पर टिप्पणी करते हुए आन्ना अख़मातवा ने अपने संस्मरणों में लिखा-- "मैं तब मन्देलश्ताम के साथ स्टेशन पर फ़ोन करने गई थी । वे पारदर्शी काँच के पीछे से केबिन में मुझे फ़ोन करते हुए देख रहे थे । जब मैं केबिन से बाहर निकली तो उन्होंने मुझे ये चार पंक्तियाँ सुनाईं ।" | ||
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17:09, 9 जून 2025 के समय का अवतरण
विकृत हैं चेहरे की रेखाएँ
बूढ़ों की-सी है मुस्कान
सचमुच में यह नर्म-चिरैया
भारी पीड़ा से हलकान
इस कविता पर टिप्पणी करते हुए आन्ना अख़मातवा ने अपने संस्मरणों में लिखा-- "मैं तब मन्देलश्ताम के साथ स्टेशन पर फ़ोन करने गई थी । वे पारदर्शी काँच के पीछे से केबिन में मुझे फ़ोन करते हुए देख रहे थे । जब मैं केबिन से बाहर निकली तो उन्होंने मुझे ये चार पंक्तियाँ सुनाईं ।"
(रचनाकाल : 1913)
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Осип Мандельштам
Черты лица искажен...»
Черты лица искажен...»
Черты лица искажены
Какой-то старческой улыбкой:
Кто скажет, что гитане гибкой
Все муки ада суждены?
1913