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"रात भर क्रंदन करती है एक स्त्री / दिनकर कुमार" के अवतरणों में अंतर

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साथ ही बहकर जाती है उदासी
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पाने और खोने की पीड़ा
  
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वायलिन वादक की आँखों से टपकती संवेदना
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हौले से
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अपनी आँखों में समा लता हूँ
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मेरे रोम-रोम में होती है
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अजीब-सी सिहरन
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यह कौन सी धुन है
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जो मेरी आँखों से आँसू की बरसात
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करवा देती है
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मेरे भीतर घुमड़ती हुई घुटन
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बर्फ़ की तरह पिघलने लगती है
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मुझे याद है ऎसी ही किसी तान को
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सुनते हुए
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कभी भीड़ के बीच चुपचाप
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रोता रहा था
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कभी ऎसी ही तान को सुनकर
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रात भर गुमसुम सा
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जागता रहा था
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मैं भूल जाता हूँ विषाद की खरोंचों को
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दुनियादारी की तमाम विकृतियों को
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एक लहर बहाकर ले जाती है
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मुझे
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मेरे भीतर समाता जाता है उल्लास
  
  
 
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20:15, 27 नवम्बर 2008 का अवतरण

एक लहर बहाकर ले जाती है
मुझे
साथ ही बहकर जाती है उदासी
कुंठाएँ
पाने और खोने की पीड़ा

वायलिन वादक की आँखों से टपकती संवेदना
हौले से
अपनी आँखों में समा लता हूँ
मेरे रोम-रोम में होती है
अजीब-सी सिहरन

यह कौन सी धुन है
जो मेरी आँखों से आँसू की बरसात
करवा देती है
मेरे भीतर घुमड़ती हुई घुटन
बर्फ़ की तरह पिघलने लगती है

मुझे याद है ऎसी ही किसी तान को
सुनते हुए
कभी भीड़ के बीच चुपचाप
रोता रहा था
कभी ऎसी ही तान को सुनकर
रात भर गुमसुम सा
जागता रहा था

मैं भूल जाता हूँ विषाद की खरोंचों को
दुनियादारी की तमाम विकृतियों को
एक लहर बहाकर ले जाती है
मुझे
मेरे भीतर समाता जाता है उल्लास