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"रात भर क्रंदन करती है एक स्त्री / दिनकर कुमार" के अवतरणों में अंतर

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एक लहर बहाकर ले जाती है
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रात भर क्रंदन करती है एक स्त्री
मुझे
+
रात भर
साथ ही बहकर जाती है उदासी
+
चांदनी का मैलापन
कुंठाएँ
+
समाया रहता है मेरी आँखों में
पाने और खोने की पीड़ा
+
सपने में वैशाख
 
+
भूपेन हजारिका का गायन
वायलिन वादक की आँखों से टपकती संवेदना
+
बन जाता है
हौले से
+
गुलमोहर के पेड़ के नीचे
अपनी आँखों में समा लता हूँ
+
सुर्ख़ लाल रंग का लिबास पहनकर
मेरे रोम-रोम में होती है
+
चित्रलेखा किसी की राह देखती है
अजीब-सी सिहरन
+
 
+
यह कौन सी धुन है
+
जो मेरी आँखों से आँसू की बरसात
+
करवा देती है
+
मेरे भीतर घुमड़ती हुई घुटन
+
बर्फ़ की तरह पिघलने लगती है
+
 
+
मुझे याद है ऎसी ही किसी तान को
+
सुनते हुए
+
कभी भीड़ के बीच चुपचाप
+
रोता रहा था
+
कभी ऎसी ही तान को सुनकर
+
रात भर गुमसुम सा
+
जागता रहा था
+
 
+
मैं भूल जाता हूँ विषाद की खरोंचों को
+
दुनियादारी की तमाम विकृतियों को
+
एक लहर बहाकर ले जाती है
+
मुझे
+
मेरे भीतर समाता जाता है उल्लास
+
  
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रात भर क्रंदन करती है एक स्त्री
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रात भर
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शहर का पथरीला सीना
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शांत रहता है
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बंद रहती हैं खिड़कियाँ
 +
खाँसते नहीं हैं बुजुर्ग
 +
झाँकती नहीं हैं चाचियाँ-दादियाँ
 +
रात भर एक घने जंगल में
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सिहरता रहता हूँ मैं
  
 
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20:20, 27 नवम्बर 2008 का अवतरण

रात भर क्रंदन करती है एक स्त्री
रात भर
चांदनी का मैलापन
समाया रहता है मेरी आँखों में
सपने में वैशाख
भूपेन हजारिका का गायन
बन जाता है
गुलमोहर के पेड़ के नीचे
सुर्ख़ लाल रंग का लिबास पहनकर
चित्रलेखा किसी की राह देखती है

रात भर क्रंदन करती है एक स्त्री
रात भर
शहर का पथरीला सीना
शांत रहता है
बंद रहती हैं खिड़कियाँ
खाँसते नहीं हैं बुजुर्ग
झाँकती नहीं हैं चाचियाँ-दादियाँ
रात भर एक घने जंगल में
सिहरता रहता हूँ मैं