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"धरती और आकाश का मौन संवाद / पूनम चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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पर कभी थमा नहीं।
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वह सुनती उनकी पीड़ा,
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बढ़ती जड़ों का भय भी
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वह जानती थी।
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आकाश ने देखा
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धरती के इस मौन को —
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एक अनकहे आकर्षण से —
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कभी गरज कर,
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कभी चुप रहकर।
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धरती ने नहीं माँगा
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कि आकाश झुक आए
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उसकी देह पर।
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आकाश भी समझता था
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अपना सीमांकन।
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हर रूप को अपनाया,
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पी गई हर भाव,
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और आकाश —
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हर फूल में
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अपना प्रतिबिंब
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देखने लगा।
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स्पर्श में नहीं,
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एक ने सहा,
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दूसरे ने बिखरा —
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फिर भी दोनों
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अपूर्ण होकर भी
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पूर्ण रहे एक-दूसरे में।
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जब संतानें हुईं —
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तो वे मेघ बने,
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हवाएँ बनीं,
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जो हर रोज़
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धरती और आकाश के मध्य
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बुनती रहीं सेतु।
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हर स्त्री
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थोड़ी धरती है —
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सहेजने वाली, सहने वाली।
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थोड़ा आकाश —
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आकर्षण में उलझा,
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किंतु अनभिज्ञ,
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उस स्थिरता से
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जो उसे निरंतर थामे रहती है।
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18:06, 14 जुलाई 2025 के समय का अवतरण

जब स्त्री ने
चुना,
धरती होना,
तो उसने सीखा —
धारण करना।

वह बनी
हर बीज, हर पीड़ा, आशा-उपेक्षा —
हर गीत सहेजने वाली।
अपनी नमी में
उगाती रही समय।

और जब पुरुष
आकाश हुआ,
तो वह बना —
दूर, छिटका हुआ,
विस्तार में बसा,
पर कभी थमा नहीं।

वो शिखर था,
जहाँ इच्छाएँ दिशाहीन हो जाती थीं —
विस्तृत, किंतु
अनुत्तरित।

धरती ने सीखा —
स्थिरता में भी स्पंदन।
पत्तों के गिरने में भी
वह सुनती उनकी पीड़ा,
बढ़ती जड़ों का भय भी
वह जानती थी।

और

आकाश ने देखा
धरती के इस मौन को —
एक अनकहे आकर्षण से —
कभी गरज कर,
कभी चुप रहकर।

धरती ने नहीं माँगा
कि आकाश झुक आए
उसकी देह पर।

वह जानती थी —
प्रेम विराम नहीं,
प्रवाह है—
सहनशील,
अंतहीन।

आकाश भी समझता था
अपना सीमांकन।
धरती का स्पर्श
संभव नहीं —
इसलिए

क्रोध में की घनघोर बारिशें,
प्रेम में ओस बन
सहेजता रहा —
बूँद के रूप में
गिराता रहा आँसू।

धरती ने
हर रूप को अपनाया,
पी गई हर भाव,
रच दिए फूल,
कविताएँ उगाईं।

और आकाश —
हर फूल में
अपना प्रतिबिंब
देखने लगा।

उनका प्रेम
स्पर्श में नहीं,
विरह में था,
पीड़ा में था,
प्रार्थनाओं में था,
और
स्वीकृति में था।

एक ने सहा,
दूसरे ने बिखरा —
फिर भी दोनों
अपूर्ण होकर भी
पूर्ण रहे एक-दूसरे में।

जब संतानें हुईं —
तो वे मेघ बने,
हवाएँ बनीं,
सुगंध बनीं —
जो हर रोज़
धरती और आकाश के मध्य
बुनती रहीं सेतु।

और तब से —
हर स्त्री
थोड़ी धरती है —
सहेजने वाली, सहने वाली।

और हर पुरुष
थोड़ा आकाश —
आकर्षण में उलझा,
किंतु अनभिज्ञ,
 उस स्थिरता से
जो उसे निरंतर थामे रहती है।
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