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"यार ये ज़ख़्म / चरण जीत चरण" के अवतरणों में अंतर

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22:44, 17 अगस्त 2025 के समय का अवतरण

खाली बर्तन को भर भी सकते थे
तेरे ग़म से उभर भी सकते थे

बस अहद कर लिया था जीने का
वर्ना उस रोज़ मर भी सकते थे

इक मैं, इक तू थी और तन्हाई
हम कि हद से गुजर भी सकते थे

बाकी दुनिया से ख़ैर क्या ? तुझसे
थोड़ी उम्मीद कर भी सकते थे

गर मुसलसल जले नहीं होते
यार ये ज़ख़्म भर भी सकते थे