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"मुक्तक 1 / अमन मुसाफ़िर" के अवतरणों में अंतर

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प्रेम  की    पीर  का एक इतिहास हो  
 
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एक तपते मरुस्थल की तुम प्यास हो  
 
एक तपते मरुस्थल की तुम प्यास हो  
  
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कोई  रूठा  तो  कहते हो क्या हो गया  
 
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दिल जो टूटा तो कहते हो क्या हो गया  
 
दिल जो टूटा तो कहते हो क्या हो गया  
  
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बंद  कमरे  में  सिमटी  हुयी जान है
 
बंद  कमरे  में  सिमटी  हुयी जान है
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आदमी    आदमी    से    परेशान है  
 
आदमी    आदमी    से    परेशान है  
  
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फूल  मुरझा  गया पत्तियाँ न मिलीं  
 
फूल  मुरझा  गया पत्तियाँ न मिलीं  
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भक्ति रस में रमा  नाम बन जाओगे  
 
भक्ति रस में रमा  नाम बन जाओगे  

22:42, 26 अगस्त 2025 के समय का अवतरण

मुक्तक - 1

प्रेम की पीर का एक इतिहास हो
एक मुसाफ़िर की टूटी हुई आस हो
मेघ नभ के न वर्षा न कोई नदी
एक तपते मरुस्थल की तुम प्यास हो

मुक्तक - 2

कोई रूठा तो कहते हो क्या हो गया
साथ छूटा तो कहते हो क्या हो गया
अपशकुन हो गया काँच का टूटना
दिल जो टूटा तो कहते हो क्या हो गया

मुक्तक - 3

बंद कमरे में सिमटी हुयी जान है
इस तरफ पर किसी का नहीं ध्यान है
जिस जगह जाईये पाइए बस यही
आदमी आदमी से परेशान है

मुक्तक - 4

फूल मुरझा गया पत्तियाँ न मिलीं
एक मुद्दत हुयी चिट्टियां न मिलीं
साल भर के लिए घर न आ पाऊँगा
माफ़ करना मुझे छुट्टियाँ न मिलीं


मुक्तक -5

भक्ति रस में रमा नाम बन जाओगे
एक पावन कोई धाम बन जाओगे
कृष्ण बन जाओगे कर्म को साधकर
काम को त्याग दो राम बन जाओगे