"एक से एक बढ़ के / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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सूरत-शक्ल से | सूरत-शक्ल से | ||
बिल्कुल इंग्लैंड हैं | बिल्कुल इंग्लैंड हैं | ||
− | एक दिन | + | एक दिन बोले- |
"यार तीन लड़के हैं | "यार तीन लड़के हैं | ||
एक से एक बढ़ के हैं | एक से एक बढ़ के हैं | ||
− | एक नेता | + | एक नेता है |
हर पाँचवें साल | हर पाँचवें साल | ||
दस-बीस हज़ार की चोट देता है | दस-बीस हज़ार की चोट देता है | ||
पिछले दस साल से | पिछले दस साल से | ||
चुनाव लड़ रहा है | चुनाव लड़ रहा है | ||
− | नहीं बन पाया सड़ा सा एम.एल.ए. | + | नहीं बन पाया सड़ा-सा एम.एल.ए. |
बोलो तो कहता है- | बोलो तो कहता है- | ||
"अनुभव बढ़ रहा है।" | "अनुभव बढ़ रहा है।" | ||
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दवा के साथ बह गए | दवा के साथ बह गए | ||
मगर हमारी काकी | मगर हमारी काकी | ||
− | बड़े बूढ़ों के नाम पर | + | बड़े-बूढ़ों के नाम पर |
वही थी बाकी | वही थी बाकी | ||
चल फिर लेती थी | चल फिर लेती थी | ||
कम से कम | कम से कम | ||
− | घर का काम तो | + | घर का काम तो कर लेती थी |
− | जैसे तैसे जी रही थी | + | जैसे-तैसे जी रही थी |
कम से कम | कम से कम | ||
पानी तो पी रही थी | पानी तो पी रही थी | ||
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लगते ही हाथ | लगते ही हाथ | ||
हो गया सन्निपात | हो गया सन्निपात | ||
− | बिना जल की मछली सी | + | बिना जल की मछली-सी |
फडफडाती रही | फडफडाती रही | ||
दो ही दिनों में सिकुड़कर | दो ही दिनों में सिकुड़कर | ||
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पाला हमने | पाला हमने | ||
और वसीयत दूसरे के नाम कर गई।" | और वसीयत दूसरे के नाम कर गई।" | ||
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14:58, 29 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
हमारे एक फ्रैंड हैं
सूरत-शक्ल से
बिल्कुल इंग्लैंड हैं
एक दिन बोले-
"यार तीन लड़के हैं
एक से एक बढ़ के हैं
एक नेता है
हर पाँचवें साल
दस-बीस हज़ार की चोट देता है
पिछले दस साल से
चुनाव लड़ रहा है
नहीं बन पाया सड़ा-सा एम.एल.ए.
बोलो तो कहता है-
"अनुभव बढ़ रहा है।"
पालिटिक्स के चक्कर में
बन गया पोलिटिकल घनचक्कर
और दूसरा ले रहा है
कवियों से टक्कर
कविताएँ बनाता है
न सुनो तो
चाय पिलाकर सुनाता है
तीसरा लड़का डॉक्टर है
कई मरीज़ो को
छूते ही मार चुका है
बाहर तो बाहर
घर वालों को तार चुका है
हरा भरा घर था
दस थे खाने वाले
कुछ और थे आने वाले
केवल पांच रह गए
बाकी के सब
दवा के साथ बह गए
मगर हमारी काकी
बड़े-बूढ़ों के नाम पर
वही थी बाकी
चल फिर लेती थी
कम से कम
घर का काम तो कर लेती थी
जैसे-तैसे जी रही थी
कम से कम
पानी तो पी रही थी
मगर हमारे डॉक्टर बेटे का
लगते ही हाथ
हो गया सन्निपात
बिना जल की मछली-सी
फडफडाती रही
दो ही दिनों में सिकुड़कर
हाफ़ हो गई
और तीसरे दिन साफ़ हो गई
दुख तो इस बात का है
कि हमारी ग़ैरहाज़िरी में मर गई
पाला हमने
और वसीयत दूसरे के नाम कर गई।"