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"फूलों की शोखी़ से तेरी याद जवाँ होती है/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर

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15:20, 28 दिसम्बर 2008 का अवतरण

लेखन वर्ष: २००५

फूलों की शोखी़ से तेरी याद जवाँ होती है
हर नज़्म में तेरी बात निहाँ होती है

सावन की पहली बारिश की सौंधी खु़शबू
तेरे बदन की खु़शबू का गु़माँ होती है

लम्स जो सर्दियों की धूप से मिलता है
उसमें तेरी उँगलियों की ज़ुबाँ होती है

आँखें इतनी सुन्दर और निर्मल हैं
जैसे सुबह-सुबह पाक अज़ाँ होती है

गेसू बनाये हुए मिजाज़ से उड़ते हैं
जो देखभर ले फ़िदा उसकी जाँ होती है

चाँद को देखता हूँ जब भी ज़रा ग़ौर से
उसमें भी शक़्ल आपकी अयाँ होती है

लब तो ओस में भीगे हुए गुलाब हैं
जिनके बोसे को तिश्नगी रवाँ होती है

‘नज़र’ की मोहब्बत को हद नहीं है
दिल माँगते हैं वह हाथों में जाँ होती है