भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जो ब-वक़्ते-मर्ग तेरी आरज़ू रहे/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: '''लेखन वर्ष: २००५''' <br/><br/> जो ब-वक़्ते-मर्ग तेरी आरज़ू रहे<br/> इससे क्या ...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र' | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
'''लेखन वर्ष: २००५''' <br/><br/> | '''लेखन वर्ष: २००५''' <br/><br/> | ||
जो ब-वक़्ते-मर्ग तेरी आरज़ू रहे<br/> | जो ब-वक़्ते-मर्ग तेरी आरज़ू रहे<br/> |
15:21, 28 दिसम्बर 2008 का अवतरण
लेखन वर्ष: २००५
जो ब-वक़्ते-मर्ग तेरी आरज़ू रहे
इससे क्या कि उम्रभर रू-ब-रू रहे
गर न कही उम्रभर दिल की बात
इससे क्या कि आते-जाते गुफ़्तगू रहे
मैं तुम्हें देखूँ तुम मुझे देखो मुड़-मुड़के
न तुझे सुकूँ रहे न मुझे सुकूँ रहे
तुम इशारों में कहो मैं इशारों को पढूँ
दो दिलों को मोहब्बत की जुस्तजू रहे
तुमने दिल मेरा आख़िरश जीत लिया
अब दिल में तेरे लिए नया जुनूँ रहे
ऐसे हालात का बाइस महज़ तुम हो
इससे क्या कि निगाह में खू़ब-रू रहे
ब-वक़्ते-मर्ग: मृत्यु के समय भी । आख़िरश: अंतत: । बाइस: कारण । ख़ूब-रू: ख़ूबसूरत चेहरे