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00:29, 30 दिसम्बर 2008 का अवतरण
जग में आकर इधर उधर देखा|
तू ही आया नज़र जिधर देखा|
जान से हो गए बदन ख़ाली,
जिस तरफ़ तूने आँख भर देखा|
नाला फ़िरयाद आह और ज़ारी,
आप से हो सका सो कर देखा|
उन लबों ने की न मसिहाई,
हम ने सौ-सौ तरह से मर देखा|
ज़ोर आशिक़ मिज़ाज है कोई,
‘दर्द’ को कि़स्सा-ए- मुख्तसर देखा|