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"फूलों की शोखी़ से तेरी याद जवाँ होती है/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
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जो देख-भर ले फ़िदा उसकी जाँ होती है | जो देख-भर ले फ़िदा उसकी जाँ होती है | ||
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उसमें भी शक़्ल आपकी अयाँ होती है | उसमें भी शक़्ल आपकी अयाँ होती है | ||
04:39, 30 दिसम्बर 2008 का अवतरण
फूलों की शोखी़ से तेरी याद जवाँ होती है
हर नज़्म में तेरी बात निहाँ होती है
सावन की पहली बारिश की सौंधी खु़शबू
तेरे बदन की खु़शबू का गु़माँ होती है
लम्स जो सर्दियों की धूप से मिलता है
उसमें तेरी उंगलियों की ज़ुबाँ होती है
आँखें इतनी सुन्दर और निर्मल हैं
जैसे सुबह-सुबह पाक अज़ाँ होती है
गेसू बनाये हुए मिजाज़ से उड़ते हैं
जो देख-भर ले फ़िदा उसकी जाँ होती है
चाँद को देखता हूँ जब भी ज़रा ग़ौर से
उसमें भी शक़्ल आपकी अयाँ होती है
लब तो ओस में भीगे हुए गुलाब हैं
जिनके बोसे को तिश्नगी रवाँ होती
‘नज़र’ की मोहब्बत को हद नहीं है
दिल मांगते हैं वह हाथों में जाँ होती है
रचनाकाल : 2005