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"पेड़ / यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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और हवा
 
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पहले उस पर । टिकती हैं आँखें
 
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पेड़ की रगों में भी बह रही
 
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है वह कथा
 
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जो इस वक़्त
 
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तुम रहे हो सोच ।
 
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18:10, 1 जनवरी 2009 का अवतरण

टकराता ही रहता है वह पेड़,
दीवारों से,
मकान की ।

लिए हुए हरापन, परत धूल की,
बूंदें बारिश की । किरणें, चाँदनी ।
और हवा
जो दिखती है सबसे
पहले उस पर । टिकती हैं आँखें
दुखी-सुखी ।

देखो, देखो
पेड़ की रगों में भी बह रही
है वह कथा
जो इस वक़्त
तुम रहे हो सोच ।