"चौबीस मुक्तक / प्राण शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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'''3. | '''3. | ||
− | साक़िया तुझको सदा भाता | + | साक़िया तुझको सदा भाता रहूँ |
− | तेरे हाथों से सुरा पाता | + | तेरे हाथों से सुरा पाता रहूँ |
− | इच्छा पीने की सदा | + | इच्छा पीने की सदा ज़िन्दा रहे |
− | और मयख़ाने तेरे आता | + | और मयख़ाने तेरे आता रहूँ |
'''4. | '''4. | ||
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'''5. | '''5. | ||
− | + | ज़िन्दगी है, आत्मा है, ज्ञान है | |
मदभरा संगीत है औ' गान है | मदभरा संगीत है औ' गान है | ||
सारी दुनिया के लिए ये सोमरस | सारी दुनिया के लिए ये सोमरस | ||
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'''6. | '''6. | ||
− | मधु बुरी उपदेश में गाते हैं सब | + | मधु बुरी- उपदेश में गाते हैं सब |
− | मैं | + | मैं कहूँ छुप-छुप के पी आते हैं सब |
पी के देखी मधु कभी पहले न हो | पी के देखी मधु कभी पहले न हो | ||
खामियाँ कैसे बता पाते हैं सब | खामियाँ कैसे बता पाते हैं सब | ||
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'''7. | '''7. | ||
− | जब | + | जब चख़ोगे दोस्त तुम थोड़ी शराब |
झूम जाओगे घटाओं से जनाब | झूम जाओगे घटाओं से जनाब | ||
तुम पुकार उट्ठोगे मय की मस्ती में | तुम पुकार उट्ठोगे मय की मस्ती में | ||
पंक्ति 59: | पंक्ति 59: | ||
जब भी जीवन में हो दुख से सामना | जब भी जीवन में हो दुख से सामना | ||
हाथ साक़ी का सदा तू थामना | हाथ साक़ी का सदा तू थामना | ||
− | खिल उठेगी दोस्त तेरी | + | खिल उठेगी दोस्त तेरी ज़िन्दगी |
पूरी हो जाएगी तेरी कामना | पूरी हो जाएगी तेरी कामना | ||
'''9. | '''9. | ||
− | बेझिझक होकर | + | बेझिझक होकर यहाँ पर आइए |
पीजिए मदिरा हृदय बहलाइए | पीजिए मदिरा हृदय बहलाइए | ||
नेमतों से भरा है मधु का भवन | नेमतों से भरा है मधु का भवन | ||
पंक्ति 80: | पंक्ति 80: | ||
कौन कहता है कि पीना पाप है | कौन कहता है कि पीना पाप है | ||
कौन कहता है कि यह अभिशाप है | कौन कहता है कि यह अभिशाप है | ||
− | गुण सुरा के शुष्क जन जाने | + | गुण सुरा के शुष्क जन जाने कहाँ |
ईश पाने को यही इक जाप है। | ईश पाने को यही इक जाप है। | ||
पंक्ति 88: | पंक्ति 88: | ||
हर किसी की बद्दुआ लेते नहीं | हर किसी की बद्दुआ लेते नहीं | ||
क्रोध सारा मस्तियों में घोल दो | क्रोध सारा मस्तियों में घोल दो | ||
− | पी के मदिरा | + | पी के मदिरा गालियाँ देते नही। |
'''13. | '''13. | ||
पंक्ति 94: | पंक्ति 94: | ||
बेतुका हर गीत गाना छोड़ दो | बेतुका हर गीत गाना छोड़ दो | ||
शोर लोगों में मचाना छोड़ दो | शोर लोगों में मचाना छोड़ दो | ||
− | + | गालियाँ देने से अच्छा है यही | |
सोम-रस पीना-पिलाना छोड़ दो | सोम-रस पीना-पिलाना छोड़ दो | ||
पंक्ति 114: | पंक्ति 114: | ||
ज़ाहिदों की इतनी भी संगत न कर | ज़ाहिदों की इतनी भी संगत न कर | ||
− | ना- नहीं की इतनी भी हुज्जत न कर | + | ना-नहीं की इतनी भी हुज्जत न कर |
एक दिन शायद तुझे पीनी पड़े | एक दिन शायद तुझे पीनी पड़े | ||
दोस्त, मय से इतनी भी नफ़रत न कर | दोस्त, मय से इतनी भी नफ़रत न कर | ||
पंक्ति 129: | पंक्ति 129: | ||
पीजिए मुख बाधकों से मोड़कर | पीजिए मुख बाधकों से मोड़कर | ||
और उपदेशक से नाता तोड़ कर | और उपदेशक से नाता तोड़ कर | ||
− | + | ज़िन्दगी वरदान सी बन जाएगी | |
पीजिए साक़ी से नाता जोड़कर | पीजिए साक़ी से नाता जोड़कर | ||
'''19. | '''19. | ||
− | मधु बिना कितनी अरस है | + | मधु बिना कितनी अरस है ज़िन्दगी |
मधु बिना इसमें नहीं कुछ दिलक़शी | मधु बिना इसमें नहीं कुछ दिलक़शी | ||
− | छोड़ | + | छोड़ दूँ मधु, मैं नहीं बिल्कुल नहीं |
बात उपदेशक से मैंने ये कही | बात उपदेशक से मैंने ये कही | ||
पंक्ति 148: | पंक्ति 148: | ||
'''21. | '''21. | ||
− | खोलकर | + | खोलकर आँखें चलो मेरे जनाब |
आजकल लोगों ने पहने है नकाब | आजकल लोगों ने पहने है नकाब | ||
होश में रहना बड़ा है लाज़िमी | होश में रहना बड़ा है लाज़िमी | ||
पंक्ति 157: | पंक्ति 157: | ||
ओस भीगी सी सुबह धोई हुई | ओस भीगी सी सुबह धोई हुई | ||
सौम्य बच्चे की तरह सोई हुई | सौम्य बच्चे की तरह सोई हुई | ||
− | लग रही है कितनी | + | लग रही है कितनी सुन्दर आज मधु |
मद्यपों की याद में खोई हुई | मद्यपों की याद में खोई हुई | ||
23:21, 9 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
1.
मस्तियाँ दिल में जगाने को चला
ज़िंदगी अपनी बनाने को चला
शेख जी, तुम हाथ मलते ही रहो
रिंद हर पीने- पिलाने को चला
2.
क्या नज़ारे है छलकते प्याला के
क्या गिनाऊँ गुण तुम्हारी हाला के
जागते-सोते मुझे ऐ साक़िया
ख्वाब भी आते हैं तो मधुशाला के
3.
साक़िया तुझको सदा भाता रहूँ
तेरे हाथों से सुरा पाता रहूँ
इच्छा पीने की सदा ज़िन्दा रहे
और मयख़ाने तेरे आता रहूँ
4.
देवता था वो कोई मेरे जनाब
या वो कोई आदमी था लाजवाब
इक अनोखी चीज़ थी उसने रची
नाम जिसको लोग देते हैं शराब
5.
ज़िन्दगी है, आत्मा है, ज्ञान है
मदभरा संगीत है औ' गान है
सारी दुनिया के लिए ये सोमरस
साक़िया, तेरा अनूठा दान है
6.
मधु बुरी- उपदेश में गाते हैं सब
मैं कहूँ छुप-छुप के पी आते हैं सब
पी के देखी मधु कभी पहले न हो
खामियाँ कैसे बता पाते हैं सब
7.
जब चख़ोगे दोस्त तुम थोड़ी शराब
झूम जाओगे घटाओं से जनाब
तुम पुकार उट्ठोगे मय की मस्ती में
साक़िया, लाता- पिलाता जा शराब
8.
जब भी जीवन में हो दुख से सामना
हाथ साक़ी का सदा तू थामना
खिल उठेगी दोस्त तेरी ज़िन्दगी
पूरी हो जाएगी तेरी कामना
9.
बेझिझक होकर यहाँ पर आइए
पीजिए मदिरा हृदय बहलाइए
नेमतों से भरा है मधु का भवन
चैन जितना चाहिए ले जाइए
10.
मैं नहीं कहता पियो तुम बेहिसाब
अपने हिस्से की पियो लेकिन जनाब
ये अनादर है सरासर ऐ हुज़ूर
बीच में ही छोड़ना आधी शराब
11.
कौन कहता है कि पीना पाप है
कौन कहता है कि यह अभिशाप है
गुण सुरा के शुष्क जन जाने कहाँ
ईश पाने को यही इक जाप है।
12.
नाव गुस्से की कभी खेते नहीं
हर किसी की बद्दुआ लेते नहीं
क्रोध सारा मस्तियों में घोल दो
पी के मदिरा गालियाँ देते नही।
13.
बेतुका हर गीत गाना छोड़ दो
शोर लोगों में मचाना छोड़ दो
गालियाँ देने से अच्छा है यही
सोम-रस पीना-पिलाना छोड़ दो
14.
प्रीत तन-मन में जगाती है सुरा
द्वेष का परदा हटाती है सुरा
ज़ाहिदों, नफ़रत से मत परखो इसे
आदमी के काम आती है सुरा
15.
बिन किए ही साथियों मधुपान तुम
चल पड़े हो कितने हो अनजान तुम
बैठकर आराम से पीते शराब
और कुछ साक़ी का करते मान तुम
16.
ज़ाहिदों की इतनी भी संगत न कर
ना-नहीं की इतनी भी हुज्जत न कर
एक दिन शायद तुझे पीनी पड़े
दोस्त, मय से इतनी भी नफ़रत न कर
17.
दिन में ही तारे दिखा दे रिंद को
और कठपुतली बना दे रिंद को
ज़ाहिदों का बस चले तो पल में ही
उँगलियों पर वे नचा दें रिंद को
18.
पीजिए मुख बाधकों से मोड़कर
और उपदेशक से नाता तोड़ कर
ज़िन्दगी वरदान सी बन जाएगी
पीजिए साक़ी से नाता जोड़कर
19.
मधु बिना कितनी अरस है ज़िन्दगी
मधु बिना इसमें नहीं कुछ दिलक़शी
छोड़ दूँ मधु, मैं नहीं बिल्कुल नहीं
बात उपदेशक से मैंने ये कही
20.
मन में हल्की-हल्की मस्ती छा गई
और मदिरा पीने को तरसा गई
तू सुराही पर सुराही दे लुटा
आज कुछ ऐसी ही जी में आ गई
21.
खोलकर आँखें चलो मेरे जनाब
आजकल लोगों ने पहने है नकाब
होश में रहना बड़ा है लाज़िमी
दोस्तों, थोड़ी पियो या बेहिसाब
22.
ओस भीगी सी सुबह धोई हुई
सौम्य बच्चे की तरह सोई हुई
लग रही है कितनी सुन्दर आज मधु
मद्यपों की याद में खोई हुई
23.
मस्त हर इक पीने वाला ही रहे
ज़ाहिदों के मुख पे ताला ही रहे
ध्यान रखना दोस्तों इस बात का
नित सुरा का बोलबाला ही रहे
24.
क्या निराली मस्ती लाती है सुरा
वेदना पल में मिटाती है सुरा
मैं भुला सकता नहीं इसका असर
रंग कुछ ऐसा चढ़ाती है सुरा