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"पिता जी ( शब्दांजलि-१) / नवनीत शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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हो जाना चाहती हैं।
 
हो जाना चाहती हैं।
 
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'''मोटा पाठ'''
 

16:52, 15 जनवरी 2009 का अवतरण

 

घरों में बलग़मी छाती का होना

दीवारों का चौकस

छत का मजबूत होना है।

वही झेलती है

तीरों की धूप

कुरलाणियों की बरखा ।


दुख बस यही कि खिड़कियाँ

बहुत जल्‍द आसमान

हो जाना चाहती हैं।