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"एक अरूप शून्य के प्रति / गजानन माधव मुक्तिबोध" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारे दो कान हैं लंबे-चौड़े
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एक बिल्कुल स्याह
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दूसरा क़तई सफ़ेद।
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हर दस घंटे में
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करवट एक बदलते हो।
  
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एक-न-एक कान
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ढाँकता है आसमान
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और इस तरह ज़माने के शुरू से
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आसमानी शीशों के पलंग पर सोए हो।
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और तुम भी खूब हो,
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दोनों ओर पैर फँसा रक्खे हैं,
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राम और रावण को खूब खुश,
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:खूब हँसा रक्खा है।
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सृजन के घर में तुम
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मनोहर शक्तिशाली
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विश्वात्मक फैंटेसी
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दुर्जनों के घर में
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प्रचंड शौर्यवान् अंट-संट वरदान!!
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:खूब रंगदारी है,
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तुम्हारी नीति बड़ी प्यारी है।
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विपरीत दोनों दूर छोरों द्वारा पुजकर
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:स्वर्ग के पुल पर
 
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14:49, 16 जनवरी 2009 का अवतरण

रात और दिन
तुम्हारे दो कान हैं लंबे-चौड़े
एक बिल्कुल स्याह
दूसरा क़तई सफ़ेद।
हर दस घंटे में
करवट एक बदलते हो।

एक-न-एक कान
ढाँकता है आसमान
और इस तरह ज़माने के शुरू से
आसमानी शीशों के पलंग पर सोए हो।
और तुम भी खूब हो,
दोनों ओर पैर फँसा रक्खे हैं,
राम और रावण को खूब खुश,
खूब हँसा रक्खा है।
सृजन के घर में तुम
मनोहर शक्तिशाली
विश्वात्मक फैंटेसी
दुर्जनों के घर में

प्रचंड शौर्यवान् अंट-संट वरदान!!
खूब रंगदारी है,
तुम्हारी नीति बड़ी प्यारी है।
विपरीत दोनों दूर छोरों द्वारा पुजकर
स्वर्ग के पुल पर