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Kavita Kosh से
एक धब्बा धडकनों तक जाकर
फैलता जा रहा है
यहाँ बाहर कितनी साड़ी सारी रेत बिछी है
और फूलों के बीज
कसी हुई मुट्ठी के पसीने में नहा रहे हैं
शायद तुम्हारे समय के क्षितिज पर
कोई सूर्यमुखी फूल हँसता हुआ मिले...
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