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"आना / केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

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आना
 
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जब समय मिले
 
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तब भी आना
 
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आना  
 
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जैसे हाथों में
 
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आता है जांगर
 
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जैसे धमनियों में
 
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आता है रक्त
 
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जैसे चूल्हों में
 
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धीरे-धीरे आती है आँच
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आना जैसे बारिश के बाद
 
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नए-नए काँटे
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दिनों को  
 
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और वादों की धज्जियाँ उड़ाते हुए
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आना
 
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आना जैसे मंगल के बाद
 
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चला आता है बुध
 
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आना
 
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'अकाल में सारस' नामक कविता-संग्रह से
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11:52, 19 जनवरी 2009 का अवतरण

आना
जब समय मिले
जब समय न मिले
तब भी आना

आना
जैसे हाथों में
आता है जांगर
जैसे धमनियों में
आता है रक्त
जैसे चूल्हों में
धीरे-धीरे आती है आँच
आना

आना जैसे बारिश के बाद
बबूल में आ जाते हैं
नए-नए काँटे

दिनों को
चीरते-फाड़ते
और वादों की धज्जियाँ उड़ाते हुए
आना

आना जैसे मंगल के बाद
चला आता है बुध
आना