भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेरे भीतर / मोहन साहिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन साहिल |संग्रह=एक दिन टूट जाएगा पहाड़ / मोहन ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:16, 20 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

मुझे आकाश जैसा नीलापन चाहिए
और सीमाओं रहित विस्तार
काले बादलों से घिरने के बावजूद
मैं रहना चाहता हूँ कोरा स्वच्छ
समेटना चाहता हूँ
पूरा का पूरा तारामण्डल
अपने भीतर
चमकता हुआ
ताकि देख पाए दुनिया
मेरे भीतर और भीतर
जहाँ छिपे हैं
ब्रह्माण्ड के अनगिनत रहस्य