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+ | पौधे, बौर, वृक्ष, फूल और कलियाँ | ||
+ | जंगल और झरने, जलचर और नदियाँ | ||
+ | सुनाते रहते हैं अविराम | ||
+ | पर्वत को 'साम' | ||
+ | खुलता रहता है अनायास सबका ताना-बाना | ||
+ | राह पा लेता है हर भूला-भटका अनजाना । | ||
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01:20, 22 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
किसी अनजानी जगह में
कोई अनजाना
किससे राह पूछे
जहाँ सबको अपनी-अपनी पड़ी हो
वहाँ कौन किसकी बात सुने
यहाँ सबने सीखी हुई है बन्द रहने की कला
'हाय-हलो' वाले कैसे पूरा खुलें भला
नपी-तुली-सधी मुस्कुराहटें
और हिलते हाथ
कब तक दें साथ
जहाँ हर कोई अकेला हो
किसी को किसी की न हो ख़बर
जहाँ अन्तर के तारों पर बजते हों
अलग-अलग स्वर
वहाँ भी
पौधे, बौर, वृक्ष, फूल और कलियाँ
जंगल और झरने, जलचर और नदियाँ
सुनाते रहते हैं अविराम
पर्वत को 'साम'
खुलता रहता है अनायास सबका ताना-बाना
राह पा लेता है हर भूला-भटका अनजाना ।