"तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले / मोमिन" के अवतरणों में अंतर
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हम तो कल ख्वाब-ए-अदम1 में शब-ए-हिजराँ2 होंगे | हम तो कल ख्वाब-ए-अदम1 में शब-ए-हिजराँ2 होंगे |
14:17, 22 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हम तो कल ख्वाब-ए-अदम1 में शब-ए-हिजराँ2 होंगे
एक हम हैं कि हुए ऎसे पशेमान3 कि बस
एक वो हैं कि जिन्हें चाह4 के अरमाँ होंगे
हम निकालेंगे सुन ऐ मौज-ए-सबा5 बल तेरा
उसकी ज़ुल्फ़ों के अगर बाल परेशाँ होंगे
फिर बहार आई वही दश्त नवरदी6 होगी
फिर वही पाँव वही खार-ए-मुग़ीलाँ7 होंगे
मिन्नत-ए-हज़रत-ए-ईसा8 न उठाएँगे कभी
ज़िन्दगी के लिए शर्मिन्दा-ए-एहसाँ9 होंगे?
उम्र तो सारी क़टी इश्क़-ए-बुताँ10 में 'मोमिन'
आखिरी उम्र में क्या खाक मुसलमाँ होंगे
शब्दार्थ:
1. कभी न ख़त्म होने वाला सपना : 2. जुदाई की रात 3. शर्मिन्दा 4. चाहत 5. हवाओं के झोंके 6. मरूस्थल में भटकना 7. बबूल के काँटे , 8. हज़रत ईसा की ख़ुशामद , 9. एहसान लेके शर्मिन्दा होना , 10. हसीनों से प्यार-मोहब्बत