भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ठसाठस / अनूप सेठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप सेठी }} <poem> घड़ी आज भी बजा रही है साढ़े चार यू...)
(कोई अंतर नहीं)

00:33, 23 जनवरी 2009 का अवतरण

घड़ी आज भी बजा रही है साढ़े चार
यूँ शायद बज चुके हैं पौने पाँच
दफ्तरों में हर कोई व्यस्त है अपने लद्धड़पन के बावजूद
बीसियों बरसों से
खड़े खड़े कुढ़ने तक की नहीं है सोहबत

घरों में बहुत हैं झुनझुने
आटे दाल के भरे अधभरे बजबजाते कनस्तर
केलैण्डर से उड़नछू हो रहे दिन महीने बरस
मगन होके हगने तक की नहीं है मोहलत

लगेंगे चश्मे होंगे भर्ती अस्पतालों में सब एक दिन
लोकल ट्रेनों की भीड़ में एकांत है सुलभ
पसीने से चिपचिपाता
बुक्का फाड़कर रोने भर की जगह नहीं है बस।