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04:45, 24 जनवरी 2009 का अवतरण
सप्ताह की कविता
शीर्षक: जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
रचनाकार: केदारनाथ अग्रवाल
:जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है :तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है :जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है :जो रवि के रथ का घोड़ा है :वह जन मारे नहीं मरेगा :नहीं मरेगा :जो जीवन की आग जला कर आग बना है :फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है :जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है :जो युग के रथ का घोड़ा है :वह जन मारे नहीं मरेगा :नहीं मरेगा