भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुधि करो कहा "क्यों स्नेह-सलिल संकुल तेरे कुवलय लोचन / प्रेम नारायण 'पंकिल'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल' |संग्रह= }} Category:कविता <poem> सुध...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:28, 24 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
सुधि करो कहा "क्यों स्नेह-सलिल संकुल तेरे कुवलय लोचन ।
क्यों गाढ़ प्रणय-परिरम्भण में होता वपु-प्रसरण-संकोचन ।
कोमल कुंतल के असित अंक में गूंथे तुमने विविध सुमन ।
उमड़ता रहा रसमय परिरम्भित उरज-संपुटित हृद-स्पंदन। "
जुड़ गए परस्पर अनायास हे प्रियतम ! अरुण अधर पल्लव।
प्राणेश हुए मेरे तन के रोमांचित सिंदूरी अवयव ।
उस क्षण की भिखमंगिनी बनी बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥१८