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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[बृज नारायण चकबस्त]][[Category:=बृज नारायण चकबस्त]][[Category:कविताएँ]]}}
[[Category:नज़्म]]
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*रुखसत हुआ वो बाप से ले कर खुदा का नाम <br>राह-ए-वफ़ा की मन्ज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम <br>मन्ज़ूर था जो माँ की ज़ियारत का इंतज़ाम <br>दामन से अश्क पोंछ के दिल से किया कलाम <br><br>
रुखसत हुअ वो बाप से ले कर खुदा का नाम <br>राहइज़हार-ए-वफ़ा कि मन्ज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम बेकसी से सितम होगा और भी <br>मन्ज़ूर था जो माँ कि ज़ियारत का इंतज़ाम <br>दामन से अश्क पोछ के दिल से किया कलाम देखा हमें उदास तो ग़म होगा और भी <br><br>
इज़्हार-ए-बेकसी से सितम होगा और भी <br>देख हमें उदास तो ग़म होग और भी <br><br> दिल को संभालता हुआ आखिर वो नौ-निहाल नौनिहाल <br>
खामोश माँ के पास गया सूरत-ए-खयाल <br>
देखा तो ऐक एक दर में है बैठि बैठी वो खस्ता हाल <br>सक्त सकता सो हो गया है, ये है शिद्दत-ए-मलाल <br><br>
तन में लहू का नाम नहीं, ज़र्द रंग है <br>
क्या जाने किस खयाल में गुम थी वो बेगुनाह <br>
नूर-ए-नज़र पे दीद-ए-हसरत से की निगाह <br>
जुम्बिश हुइ हुई लबों को, भरी एक सर्द आह <br>ली गोशा हाए गोशाहाए चश्म से अश्कों ने रुख की राह <br><br>
चेहरे का रंग हालत-ए-दिल खोलने लगा <br>
हर मू-ए-तन ज़बाँ की तरह बोलने लगा <br><br>
आखिर, असीर-ए-यास का क़ुफ़ल-एक़ुफ़्ले-दहन खुला <br>अफ़साना -ए-शदायद-ए-रंज-ओ-महन खुला <br>
इक दफ़्तर-ए-मुज़ालिम-ए-चर्ख-ए-कुहन खुला<br>
वा वो था दहानदहां-ए-ज़ख्म, के बाब-ए-सुखन खुला <br><br>
दर्द-ए-दिल-ए-गरीब ग़रीब जो सर्फ़-ए-बयां हुआ <br>ख़ून-ए-जिगर का रंग सुखन से अयां हुआ <br><br>
रो कर कहा; खामोश खडे़ खड़े क्यों हो मेरी जाँ? <br>
मैं जानती हूँ, किस लिये आये हो तुम यहाँ <br>
सब की खुशी यही है तो सहरा को हो रवाँ <br>
दुनिया का हो गया है ये कैसा लहू सफ़ेद? <br>
अंधा किये हुए है ज़र-ओ-माल की उम्मीद उम्मेद <br>
अंजाम क्या हुआ? कोई नहीं जानता ये भेद <br>
सोचे बशर, तो जिस्म हो लर्ज़ां मिसाल-ए-बेइद बेद <br><br>
लिखी है क्या हयात-ए-अबद इन के वास्ते? <br>
फैला रहे हैं जल जाल ये किस दिन के वास्ते? <br><br>
लेती किसी फ़क़ीर के घर में अगर जनम <br>
मैं खुश हूँ फूँक दे कोई इस तख़्त-ओ-ताज को <br>
तुम ही नहीं , तो आग लगाऊँगी राज को <br><br>
किन किन रियाज़तों से गुज़ारे हैं माह-ओ-साल <br>
देखी तुम्हारी शक्ल जब ऐ मेरे नौ-निहाल! <br>
पुरा पूरा हुआ जो ब्याह का अरमान था कमाल <br>
आफ़त आयी मुझ पे, हुए जब सफ़ेद बाल <br><br>
छूटती हूँ उन से, जोग लेन लें जिन के वास्ते <br>क्या सब किय किया था मैने इसी दिन के वास्ते? <br><br>
ऐसे भी नामुराद बहुत आयेंगे नज़र <br>
घर जिन के बे चिराग़ बेचिराग़ रहे आह! उम्र भर <br>
रहता मेरा भी नख्ल-ए-तमन्ना जो बेसमर <br>
ये जाये जा-ए सबर थी, के दुआ में नहीं असर <br><br>
लेकिन यहाँ तो बन के मुक़द्दर ही बिगड़ गया <br>
फल फूल ला के बाग़-ए-तमन्ना उजड़ गया <br><br>
आसान मुझ गरीब की मुश्किल अजल करे <br><br>
सुन कर ज़बाँ से माँ कि की ये फ़रयाद दर्द -ख़ेज़ <br>
उस खस्त जाँ के दिल पे ग़म की तेग-ए-तेज़<br>
आलम ये था क़रीब, के आँखें हों अश्क -रेज़ <br>
लेकिन हज़ार ज़ब्त से रोने से की गुरेज़ <br><br>
फिर अर्ज़ की ये मादर-ए-नाशाद के हुज़ूर <br>
मायूस क्युँ क्यूं हैं आप? अलम का है क्युँ क्यूं वफ़ूर? <br>
सदमा ये शाक़ आलम-ए-पीरी है ज़रूर <br>
लेकिन न दिल से कीजिये सब्र-ओ-क़रार दूर <br>