भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विषकन्या / सरोज परमार

1 byte added, 15:08, 3 फ़रवरी 2009
कुछ हो जाने का अहसास
किसी सर्प दंश से कम नहीं होता
मैं विष कन्या बनती जारही जा रही हूँ ।
यह पीली-नीली धारियों का वेश
मुझे पसन्द नहीं