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"घटा से घिर गई बदली, नज़र नहीं आती / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
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− | है चारों ओर नुमाइश के दौर जो यारों | + | है चारों ओर नुमाइश के दौर जो यारों |
− | दुआ भी अब यहाँ असली नज़र नहीं आती | + | दुआ भी अब यहाँ असली नज़र नहीं आती |
− | चमन में खार ने पहने, गुलों के चेहरे हैं | + | चमन में खार ने पहने, गुलों के चेहरे हैं |
− | कली कोई कहाँ, कुचली नज़र नही आती | + | कली कोई कहाँ, कुचली नज़र नही आती |
− | पहाड़ों से गिरा झरना तो यूँ ज़मीं बोली | + | पहाड़ों से गिरा झरना तो यूँ ज़मीं बोली |
− | ये दिल की पीर थी पिघली नज़र नही आती< | + | ये दिल की पीर थी पिघली नज़र नही आती |
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22:20, 3 फ़रवरी 2009 का अवतरण
घटा से घिर गयी बदली, नज़र नहीं आती
बहा ले नीर तू उजली, नज़र नहीं आती
हवा में शोर ये कैसा सुनाई देता है
कहीं पे गिर गयी बिजली नज़र नहीं आती
है चारों ओर नुमाइश के दौर जो यारों
दुआ भी अब यहाँ असली नज़र नहीं आती
चमन में खार ने पहने, गुलों के चेहरे हैं
कली कोई कहाँ, कुचली नज़र नही आती
पहाड़ों से गिरा झरना तो यूँ ज़मीं बोली
ये दिल की पीर थी पिघली नज़र नही आती