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"ऐसे / केशव" के अवतरणों में अंतर
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ऐसे नहीं होता
कुछ भी
एक पत्ता तक
नहीं
झरता
कहा हुआ भी
अनसुना रह जाता है
हवा का एक झोंका तक
बिन छुए
बगल से गुजर जाता है
वैसे
खामोशी में
सब कुछ हो जाता है
अनकहा
कहा बन जाता है
सोई हुई पृथ्वी
जो कई सदियों से दफन
उसके सीने में।