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"ऐसे / केशव" के अवतरणों में अंतर

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03:39, 6 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

ऐसे नहीं होता
कुछ भी
एक पत्ता तक
नहीं
झरता
कहा हुआ भी
अनसुना रह जाता है
हवा का एक झोंका तक
बिन छुए
बगल से गुजर जाता है

वैसे
खामोशी में
सब कुछ हो जाता है
अनकहा
कहा बन जाता है
सोई हुई पृथ्वी
जो कई सदियों से दफन
उसके सीने में।