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"लोग टूट जाते हैं / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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19:35, 9 फ़रवरी 2009 का अवतरण

लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में

तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में



और जाम टूटेंगे, इस शराब खाने में

मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में



हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं

उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में



फाख्ता की मज़बूरी ,ये भी कह नहीं सकती

कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में



दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी

कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में