भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | रचनाकार | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
+ | |रचनाकार=बशीर बद्र | ||
+ | }} | ||
[[Category:गज़ल]] | [[Category:गज़ल]] | ||
− | + | <poem> | |
+ | ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो | ||
+ | अजनबी जैसे अजनबी तुम हो | ||
− | + | अब कोई आरज़ू नहीं बाकी | |
+ | जुस्तजू मेरी आख़िरी तुम हो | ||
− | + | मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ | |
− | + | आसमानों की चांदनी तुम हो | |
− | + | दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें | |
− | + | किस ज़माने के आदमी तुम हो | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें | + | |
− | किस ज़माने के आदमी तुम हो < | + |
23:47, 9 फ़रवरी 2009 का अवतरण
ऐसा लगता है ज़िन्दगी तुम हो
अजनबी जैसे अजनबी तुम हो
अब कोई आरज़ू नहीं बाकी
जुस्तजू मेरी आख़िरी तुम हो
मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों की चांदनी तुम हो
दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें
किस ज़माने के आदमी तुम हो