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"आज नाराज होने से क्‍या होगा / सौरीन्‍द्र बारिक" के अवतरणों में अंतर

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कभी तो कुछ दे नहीं पाया
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आज नाराज होने से क्‍या होगा
क्‍या देता,मेरे पास क्‍या है देने के लिए
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तुमने ही तो मुझे कविता लिखना सिखाया है
एक कविता लिखी है, पढोगी
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तुम कौन हो
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याद है न !
डाइन, चुड़ैल या प्रेतिनी
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चुपचाप मेरी कापी से कविता पढ रही थी
बूढी मालिन अथवा कोई राक्षसी
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और तुम्‍हारे पढने के लिए ही लिख रहा था मैं
जब से तुम आयी हो तभी से
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चांद उगने पर कुईं खिले बिना रह सकती है कभी ?
कुछ हो गया है मुझे
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सब कुछ बदल गया है
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लेकिन बड़ा कुशल है चांद
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वह सागर में भर देता है ज्‍वार
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उसे कुमुद की भला कैसी चिन्‍ता ?
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वह अपने में मस्‍त, पर कुमुद लाचार
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खिलने को विवश।
  
कौन सा जादू किया कि
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तुम्‍हें कैसे मालूम होगा कि
सारी की सारी चीजें
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मैं कविता की खातिर कितनी बार मरता हूं
कुछ अलग अलग सी लगने लगीं
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और जीता हूं। और किसी वैराग्‍य-आसक्ति में
उस अलगाव में तुम ही सामने आयी
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जल-जल कर राख हो जाता हूं।
किसी तनहाई की मनमोहक बात
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मेरे रक्‍तकण में भर गयी
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यह कौन सा दान है
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आज नाराज होने पर क्‍या होगा
जिसकी चीज उसे लौटा देना
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तुमने ही तो मुझे कविता लिखना सिखाया है।
कभी तो कुछ दे न पाया
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कविता एक लिखी है
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जरा पढोगी
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'''अनुवाद - वनमाली दास'''
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उडि़या से अनुवाद - वनमाली दास
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20:00, 10 फ़रवरी 2009 का अवतरण

आज नाराज होने से क्‍या होगा
तुमने ही तो मुझे कविता लिखना सिखाया है

याद है न !
चुपचाप मेरी कापी से कविता पढ रही थी
और तुम्‍हारे पढने के लिए ही लिख रहा था मैं
चांद उगने पर कुईं खिले बिना रह सकती है कभी ?

लेकिन बड़ा कुशल है चांद
वह सागर में भर देता है ज्‍वार
उसे कुमुद की भला कैसी चिन्‍ता ?
वह अपने में मस्‍त, पर कुमुद लाचार
खिलने को विवश।

तुम्‍हें कैसे मालूम होगा कि
मैं कविता की खातिर कितनी बार मरता हूं
और जीता हूं। और किसी वैराग्‍य-आसक्ति में
जल-जल कर राख हो जाता हूं।

आज नाराज होने पर क्‍या होगा
तुमने ही तो मुझे कविता लिखना सिखाया है।

उडि़या से अनुवाद - वनमाली दास