"लायी हयात, आये, क़ज़ा ले चली, चले/ ज़ौक़" के अवतरणों में अंतर
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02:25, 14 फ़रवरी 2009 का अवतरण
लायी हयात<ref>ज़िन्दगी</ref>, आये, क़ज़ा ले चली, चले
अपनी ख़ुशी न आये न अपनी ख़ुशी चले
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले
कम होंगे इस बिसात<ref>जुए के खेल में</ref> पे हम जैसे बद-क़िमार<ref>कच्चे जुआरी</ref>
जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले
हो उम्रे-ख़िज़्र<ref>अमरता</ref> भी तो भी कहेंगे ब-वक़्ते-मर्ग<ref>मृत्यु के समय</ref>
हम क्या रहे यहाँ अभी आये अभी चले
दुनिया ने किसका राहे-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो युँ ही जब तक चली चले
नाज़ाँ न हो ख़िरद<ref>बुद्धि</ref> पे जो होना है वो ही हो
दानिश<ref>समझदारी</ref> तेरी न कुछ मेरी दानिशवरी चले
जाते हवाए-शौक़<ref>प्रेम की हवा</ref> में हैं इस चमन से 'ज़ौक़'
अपनी बला से बादे-सबा<ref>सुबह की शीतल वायु</ref> अब कभी चले