भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तेरा हाथ मेरे काँधे / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (59.94.140.134 (वार्ता) के अवतरण 21158 को पूर्ववत किया) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=बशीर बद्र | |रचनाकार=बशीर बद्र | ||
}} | }} | ||
+ | <poem> | ||
+ | तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है | ||
+ | कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है | ||
− | + | नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं | |
− | + | सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है | |
− | + | पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है | |
− | + | याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है | |
− | + | </poem> | |
− | पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है | + | |
− | याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता | + |
15:28, 14 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
तेरा हाथ मेरे काँधे पे दर्या बहता जाता है
कितनी खामोशी से दुख का मौसम गुजरा जाता है
नीम पे अटके चाँद की पलकें शबनम से भर जाती हैं
सूने घर में रात गये जब कोई आता-जाता है
पहले ईँट, फिर दरवाजे, अब के छत की बारी है
याद नगर में एक महल था, वो भी गिरता जाता है