भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नौ सपने / भाग 4 / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमृता प्रीतम }} Category:लम्बी कविता {{KKPageNavigation |पीछे=नौ ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:08, 14 फ़रवरी 2009 का अवतरण
<< पिछला पृष्ठ | पृष्ठ सारणी | अगला पृष्ठ >> |
मेरे और मेरी कोख तक –
यह सपनों का फ़ासला।
मेरा जिया हुलसा और हिया डरा,
बैसाख में कटने वाला
यह कैसा कनक था
छाज में फटकने को डाला
तो छाज तारों से भर गया...
... ... ...