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"एक रोज़-2 / लीलाधर मंडलोई" के अवतरणों में अंतर

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00:37, 15 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

एक रोज़ मैंने देखीं मछलियाँ अनगिनत
उनमें दमक रहे थे अनेकों सूर्य

कुछ रोज़ बाद मैंने देखा भदरंग एक जाल
मछलियाँ अब नहीं थीं

बस जल था रंगहीन और उदास होता


रचनाकाल : जुलाई 1991