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"ख़ुद कलेजा पकड़ने लगी बिजलियाँ / यश मालवीय" के अवतरणों में अंतर
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− | + | चोंच में बाज़ की शान्ति की टहनियाँ | |
− | + | फिर धमाकों में बजने लगी खिड़कियाँ | |
− | + | :::रोशनी तो हुई | |
− | + | :::पर धुआँ हो गई | |
− | ::: | + | :::जिससे लपटें उठीं, |
− | ::: | + | :::वो कुआँ हो गईं |
− | ::: | + | ख़ुद कलेजा पकड़ने लगीं बिजलियाँ |
− | ::: | + | :::लोग सोकर उठे |
− | + | :::और नारे उठे | |
− | + | :::कुछ लहर में नहीं | |
− | + | :::सब किनारे उठे | |
− | + | तन खुजाने लगीं रेत में कश्तियाँ | |
− | + | :::वक़्त के होंठ | |
− | ::: | + | :::कुछ और नीले हुए |
− | ::: | + | :::लाल आँखें हुईं |
− | ::: | + | :::दृश्य पीले हुए |
− | ::: | + | फिर ज़हर में धुलीं कुछ नई तल्ख़ियाँ |
− | + | :::जो हवा थी कभी | |
− | + | :::आँधियाँ बो गई | |
− | + | :::छप्परों-छप्परों | |
− | + | :::सिसकियाँ बो गई | |
− | + | धूल पीने लगीं नीम की तख़्तियाँ | |
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19:21, 15 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
ख़ुद कलेजा पकड़ने लगी बिजलियाँ
चोंच में बाज़ की शान्ति की टहनियाँ
फिर धमाकों में बजने लगी खिड़कियाँ
रोशनी तो हुई
पर धुआँ हो गई
जिससे लपटें उठीं,
वो कुआँ हो गईं
ख़ुद कलेजा पकड़ने लगीं बिजलियाँ
लोग सोकर उठे
और नारे उठे
कुछ लहर में नहीं
सब किनारे उठे
तन खुजाने लगीं रेत में कश्तियाँ
वक़्त के होंठ
कुछ और नीले हुए
लाल आँखें हुईं
दृश्य पीले हुए
फिर ज़हर में धुलीं कुछ नई तल्ख़ियाँ
जो हवा थी कभी
आँधियाँ बो गई
छप्परों-छप्परों
सिसकियाँ बो गई
धूल पीने लगीं नीम की तख़्तियाँ