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"अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / जन्मकथा / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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तुम ऋतुओं को पसंद करती हो
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तुम्हारी आँखों में नई आँखों के छोटे-छोटे दृश्य हैं,
और आकाश में
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तुम्हारे कंधों पर नए कंधों का
किसी-न-किसी की प्रतीक्षा करती हो
+
हल्का-सा दबाव है
तुम्हारी बाँहें ऋतुओं की तरह युवा हैं
+
तुम्हारे होंठों पर नई बोली की पहली चुप्पी है
तुम्हारे कितने जीवित जल
+
और तुम्हारी अंगुलियों के पास कुछ नए स्पर्श हैं
राहें घेरते ही जा रहे हैं।
+
माँ, मेरी माँ,
औऱ तुम हो कि फिर खड़ी हो
+
तुम कितनी बार स्वयं से ही उग जाती हो
अलसाई, धूप-तपा मुख लिए
+
और माँ, मेरी जन्मकथा कितनी ताज़ी
एक नए झरने का कलरव सुनतीं
+
और अभी-अभी की है!
– एक घाटी की पूरी हरी गरिमा के साथ!
+
 
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(1960)
 
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00:37, 16 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

तुम्हारी आँखों में नई आँखों के छोटे-छोटे दृश्य हैं,
तुम्हारे कंधों पर नए कंधों का
हल्का-सा दबाव है –
तुम्हारे होंठों पर नई बोली की पहली चुप्पी है
और तुम्हारी अंगुलियों के पास कुछ नए स्पर्श हैं
माँ, मेरी माँ,
तुम कितनी बार स्वयं से ही उग जाती हो
और माँ, मेरी जन्मकथा कितनी ताज़ी
और अभी-अभी की है!

(1960)